28-4-2020 कहानी : माहौल की सीख...(Story: Learning of the environment…)

किसी शहर में जगन नाम के एक व्यक्ति का छोटा-सा परिवार था। जगन अपनी पत्नी और छोटे-से बच्चे के साथ बड़े ऐश और आराम के साथ जीवन बिता रहा था। उसकी पत्नी और बच्चा रोज उसकी बातें प्रेम से सुनते थे।
        
जगन लोगों को बनाने में माहिर था। वह हमेशा सोचता था कि उसका बच्चा उसकी बुद्धिमानी की वजह से एक बहुत अच्छा इंसान बनेगा। समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला था।
 
एक दिन ऐसा आया, जब जगन के बच्चे का विद्यालय में प्रवेश हो गया। जगन को अपनी ट्रेनिंग पर पूरा भरोसा था। वह बड़े विश्वास के साथ कह सकता था कि उसके बच्चे को कोई भी बेवकूफ नहीं बना सकता है। जगन यह भी जानता था कि कोई अन्य समस्याग्रस्त बालक या फिर विशिष्ट बालक भी उसके बच्चे से मात खा जाएंगे।
 
एक दिन विद्यालय के जगन के सामने बालक की लेकर आए। जगन के सामने जैसे ही उसके बच्चे का अपराध सामने आया, वैसे ही उसका पूरा दिमाग रिवर्स होकर की तरह चलने लगा। अब तो सिर्फ अतीत की यादें थीं।
         
जगन को ठीक-ठीक याद है, जब वह अपने इस दोस्त की रोज कोई न कोई चीज चुरा लिया करता था और फिर वापस करता था। उसे कक्षा 2 से लेकर कक्षा 3 तक 'खोया-पाया' विभाग प्रमुख का पद दिया गया था। अपनी कार्यकुशलता को साबित करने के लिए जगन हर रोज कई सहपाठियों के कुछ सामान चोरी कर लेता था और बाद में वह उन्हें यह बताकर वापस कर देता था कि उसकी पेंसिल नल के पास पड़ी थी या फिर उसकी रबर कक्षा के बाहर पड़ी मिली थी।
 
विभाग ऐसा कि सबका रोज काम। अब कोई वस्तु किसी को मिलती तो फौरन जगन के पास आती और अगर किसी की कोई वस्तु खोती तो वह जगन के पास विनती करता था। जगन अपनी बुद्धिमत्ता के ऐसे ही किस्से रोज अपने बच्चे को सुनाता था। वह जिस विभाग में जैसे भी रहा, बिना काम किए लोगों को आसानी से बेवकूफ बना देता था।   
आज उसका बेटा कक्षा 2 में आ चुका था और उसने किसी की पेंसिल को चुराया था। जगन अपने बच्चे को अच्छा बना देखना चाहता था। जगन सोच रहा था कि पता ही नहीं चला और मैं 42 साल का हो गया हूं। ऐसा लगता है, जैसे मैं आज भी वही बच्चा हूं। 
 
जगन ने अपने बच्चे की ओर बिना गुस्सा किए प्यार से देखते हुए कहा- 'बेटे, 'खोया-पाया' विभाग आज भी मेरे पास है, लेकिन अब तक पता ही नहीं था कि क्या खोया और क्या पाया?' 
         


English translate= In a city there was a small family of a person named Jagan. Jagan was living with his wife and small child with great ash and comfort. His wife and child used to listen to him with love every day.



Jagan was an expert in fooling people. He always thought that his child would become a very good person because of his intelligence. When the time passed, it was not known.



There came a day when Jagan's child entered the school. Jagan was confident of his training. He could say with great confidence that no one could fool his child. Jagan also knew that any other problematic child or even specific child would be defeated by his child.



One day the teacher of the school brought the complaint of the boy in front of Jagan. As soon as the crime of his child came before Jagan, his whole mind started to reverse and play like a video reel. Now it was just memories of the past.



Jagan remembers exactly when he stole something from his friend every day and then returned. He was given the post of 'Khoya-Paaya' department head from class 2 to class 3. To prove his efficiency, Jagan steals some items from several classmates every day and later returns them by telling them that his pencil was lying near the tap or that his rubber was found outside the classroom.



The department is such that everyone works every day. Now someone would have come to Jagan immediately if someone had found something and if he had lost something of someone, he would beg Jagan. Jagan used to narrate similar stories of his intelligence to his child daily. The department he lived in, easily fooled people without working.

Today his son had arrived in class 2 and stole someone's pencil. Jagan wanted to see his child made good. Jagan was thinking that he did not know and I was 42 years old. It seems like I am still the same child today.



Jagan, looking at his child lovingly without getting angry, said - 'Son,' Khoya-Paaya 'department is still with me, but till now I did not know what was lost and what was found.'
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